Sonia Jadhav

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मेरी अना- भाग 6

भाग 6

अना का यह उपहार और छोटा सा नोट अनिकेत के लिए किसी टॉनिक से कम नहीं था। वो बेहद सुकून महसूस कर रहा था। उसका आत्मविश्वास फिर से लौट आया था। अनिकेत बार-बार यही कह रहा था….ओह! अना मैं भी कितना पागल हूँ पता नहीं क्या क्या सोच रहा था। कई बार भावनात्मक तौर पर खुद को काफी अकेला महसूस करता हूँ, बस इसलिए शायद उल्टा सीधा सोचने लगता हूँ। पता नहीं, मैंने यह कैसे समझ लिया कि तुम परीक्षा से पहले  मुझे शुभकामनाएं नहीं दोगी? एक तुम ही तो हो जिसने हर परिस्थिति में मुझे सम्भाला है, मेरा मनोबल बढ़ाया है और एक मैं हूँ कि तुम्हें गलत समझ रहा था। मुझे माफ़ कर देना अना।

रात को अनिकेत सोया हुआ था तभी उसके पापा कमरे में आए और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरकर चले गए बिना कुछ कहे। अनिकेत को एहसास तो हो गया था पापा के इस तरह आने का लेकिन वो चुपचाप आँखें बंद करके लेटा रहा। क्या कहता वो, उनके बीच औपचारिक बातचीत के अलावा भावनाओं का कोई आदान प्रदान ही नहीं था। लेकिन अपने पिता के इस तरह से उसके सिर पर हाथ फेरने से, अनिकेत के मन के एक कोने में कुछ नमी तो आयी थी। दुनिया में सबसे ज़्यादा कठिन कुछ है तो वो है भावनाओं को, रिश्तों को समझना। शायद उसके पापा को कहीं न कहीं अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था।

अनिकेत ने अपने सारे पेपर अना के दिए हुए पेन से ही लिखे थे। परीक्षा की शुरुवात में जहाँ अनिकेत घबराया हुआ था, वहीँ परीक्षा के अंत तक आते-आते उसकी सारी घबराहट छू मंतर हो गयी थी। उसके सारे पेपर बहुत बढ़िया हुए थे और अच्छे परिणाम की उम्मीद थी। फिलहाल उसका सपना यही था अच्छे अंकों से पास होकर, दिल्ली के किसी बढ़िया कॉलेज में अपने मनपसन्द कोर्स में दाखिला लेना। बोर्ड की परीक्षा के बाद छुट्टियाँ पड़ गयी थी, बस अब नतीजों का इंतज़ार था। उसने सोचा था जब परीक्षा खत्म हो जायेगी तो वो जी भरकर सोयेगा, पर जब सोने का समय आया तो आँखों से नींद कोसों दूर थी। अनिकेत मन ही मन सोच रहा था कि उसने लंबे समय से अना को ख़त नहीं लिखा था।

एहसास था कि वो इंतज़ार कर रही होगी उसके खतों का, बस इस बार मन चाह रहा था कि वो फ़ोन पर बात करे, कुछ उसकी सुन सके, कुछ अपनी कह सके। कब तक खतों में सिमटे रहेंगें अल्फाज़, कभी तो जुबाँ पर लाने पड़ेंगे जज़्बात।
यही सब दिमाग में चलता रहता था। मन तो करता था बात करने का, कहने के लिए भी बहुत कुछ था, बस डर लगता था कहीं कुछ ऐसा ना कह दे जिससे दोनों ही अपनी राह से भटककर किसी और राह पर चलने लगें। अभी उन चीजों के लिए बहुत वक़्त था और वो नहीं चाहता था कि उनके जज़्बात यूँ ही उलझकर रह जाएं वक़्त के भंवर में।

अनिकेत अक्सर खुद को अना के साथ देखता था बारिश में भीगते हुए और टपरी पर गरम गरम चाय की चुस्कियां लेते हुए। उसकी कल्पना और भी बहुत कुछ महसूस करती है  अना के लिए पर उन जज़्बातों को हक़ीकत में तब्दील करने का वक़्त अभी आया नहीं था। कभी-कभी अनिकेत का मन करता था कि समय पलक झपकते ही बीत जाए, वो दोनों अपने-अपने करियर में सेटल हो जाए ताकि वो बेहिचक, खुलकर अना से अपने दिल की बात कर सके। काश! समय इंसान के चाहने से कम या ज्यादा रफ्तार से बीत पाता। समय पर किसका नियंत्रण है और वैसे भी हर चीज का होने का अपना एक सही समय तय है । अनिकेत और अना के लिए वो सही समय अभी बहुत दूर था।

अनिकेत ने पेन उठा ही लिया और अना को ख़त लिखने लगा। अना को ख़त लिखते समय, वक़्त कैसे  गुज़र जाता था, पता ही नहीं चलता था। एक-एक शब्द लिखते हुए ऐसा लग रहा था जैसे शब्द खुद ब खुद कह रहें हो…. अनिकेत की अँधेरी जिंदगी को जगमगाने वाला जुगनू तुम ही हो अना। काश! तुम्हें यह सब कह पाता "मेरी अना"।

अना की ज़िंदगी भी घर से कॉलेज और कॉलेज से घर के बीच में गुज़र रही थी। मुम्बई की दौड़ती-भागती जिंदगी में अब अना का मन भी रमने लगा था। नए दोस्त बन गए थे, अना का ज़्यादातर वक़्त उनके साथ गुज़रने लगा था। मुम्बई में चाहे कितना ही क्यों न घुल मिल जाए, देहरादून तो गाहे बगाहे याद आ ही जाता था। पहाड़ी कहीं भी रहे लेकिन पहाड़ दिल से जाते कहाँ हैं। अना के दिल में भी एक पहाड़ी था, जिसके खतों का इंतज़ार उसे हमेशा रहता था।

कॉलेज से घर आयी तो देखा मम्मी ने मेज़ पर अनिकेत का खत रखा हुआ था।
हर बार जब भी अनिकेत का खत आता था एक तरफ से अना की आँख से आंसू बहते थे और दूसरी तरफ से होंठों पर मुस्कुराहट रहती थी। आँसु इतंज़ार की गवाही देते थे और मुस्कुराहट खत मिलने की ख़ुशी के।
अना ने खत हाथों में लिया और खिड़की के कोने पर बैठकर खत पढ़ने लगी…..

प्रिय अना
कैसी हो तुम? मैं ठीक हूँ। बोर्ड की परीक्षा ख़त्म हो गयी है अना, अब बस परिणाम का इंतज़ार है। परीक्षा से पहले तुम्हारे खत का बहुत इंतज़ार किया और जब नहीं आया तो मन कहीं ना कहीं अंदर से क्षुब्ध हो गया था। लेकिन ठीक परीक्षा के एक दिन पहले आए तुम्हारे उपहार और एक छोटे से नोट ने मेरी नाराज़गी को ख़ुशी में बदल दिया।

तुम्हारे कहे अनुसार तुम्हारे उपहार में दिए हुए पेन से ही मैंने सारे पेपर लिखे। सारे पेपर बहुत अच्छे हुए, अब देखते हैं नतीजा क्या आता है? तुम्हारे लिखे गए शब्द मेरे लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। जब-जब मैं निराश हुआ हूँ, तब-तब तुमने मुझे निराशा के अंधेरों से बाहर निकाला है।
तुम्हारा जितना आभार प्रकट करूँ उतना कम है। मुझे गिरने से अब डर नहीं लगता, जानता हूँ तुम मुझे संभाल लोगी। खुद को खुशकिस्मत मानता हूँ कि मुझे दोस्त के रूप में तुम मिली।
मैंने बी. ए(मास कम्युनिकेशन) में करने का सोचा है दिल्ली से। इस बारे में तुम अपने विचारों से अवगत कराना। तुमने एयरहोस्टेस के कोर्स के लिए कोई इंस्टिट्यूट ज्वाइन किया कि नहीं और तुम्हारा कॉलेज कैसा चल रहा है?

देहरादून तुम्हें बहुत याद करता है, यहाँ के पहाड़ बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं कि तुम कब आओगी और अपनी मीठी सी मुस्कुराहट से इन्हें फिर से हरा भरा कर दोगी।
यूँ तो बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ खत में, फिर रोक लेता हूँ खुद को। जब मिलेंगे कभी, कुछ उस वक़्त के लिए सहेजकर रखना चाहता हूँ।
शेष मिलने पर।

तुम्हारा दोस्त,
अनिकेत।

अना के लिए अनिकेत का खत मानो खुशियों की बौछार जो उसके तपते मन को भीतर तक भिगो देती थी। मुम्बई की जिंदगी में यूँ तो वो रच बस गयी थी लेकिन आत्मा में अभी भी देहरादून ही बसा था। पहाड़ी लोग दुनिया के जिस भी कोने में बस जाए, जिस भी रंग रूप में ढल जाएं लेकिन रहते वो पहाड़ी ही हैं। जगह बदल जाती है, रहन सहन भी लेकिन कुछ नहीं बदलती है तो वो है आत्मा। जीविका की तलाश में अधिकांश उत्तराखंडी पलायन कर चुके हैं गाँवों से, छोटे शहरों से। शरीर तो पलायन कर चुके हैं लेकिन आत्मा वहीँ पहाड़ों में बसती है।

अना की आत्मा में भी देहरादून बसा था और उसमें रहने वाला एक पहाड़ी।

❤सोनिया जाधव

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3 Comments

Preeta

13-Feb-2022 10:39 PM

Nicely written

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Seema Priyadarshini sahay

10-Feb-2022 04:02 PM

बहुत ही खूबसूरत भाग

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वैभव

09-Feb-2022 07:16 PM

Bahut khoob...

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